तो अच्छा होता
20 inch * 13 inch
pen and watercolor on paper
इन बुने हुए रंगो में,
कुछ ख़ास है मगर।
जैसे ही छुओ उन्हें,
तो बिखरे वो उधर।
मिट तो हम सब रहे हैं,
पर वो आवाज, वो आलम ना मिटता,
तो अच्छा होता।
भाई! ये सवेरा है या शाम?
कुछ नया, या फिर बड़ा पुराना?
ये दिन ना ही ढलता,
वो धुप ना ही आती,
तो अच्छा होता।
गर बैठ पाते हम, ज़रा सुनते उन्हें,
दो बातें इधर भी, कुछ मुस्कान ही सही।
खिलखिलाते दो बोल,
एक शाम,
तो अच्छा होता।
ऐसी दसताएं ज़िन्दगी,
जो इधर तो है ही और उधर भी।
हँसते हुए दिल से और कभी रुकने को भी मजबूर करे,
अगर सब में ये बात होती, और फिर भी ये ख़ास होती,
तो अच्छा होता।