वो चंद लकीरें
36 inch * 48 inch
oil on canvas
ज़िन्दगी के बहाव में, ऐ माँ, मैंने देखा है लोगों को कई मक़ाम हासिल करते हुए,
कुछ रिश्ते, कुछ पल और कुछ चंद लकीरें।
टूटते हुए देखा, मुड़ते हुए देखा, ज़िन्दगी के केहर से लोगों को डरते हुए भी देखा।
मगर, ऐ माँ! जब तुम्हे देखा, हैरत हुई …
मैंने तुम्हे ज़िन्दगी के हर रंग को अपनाते हुए देखा,
कुछ हसीं बने, कुछ आंसू और ख़ामोशी में रंग गए।
खुश थे वो, हाँ! आखिर तुमने उन्हें अपने चेहरे पर जगह जो दे रखी थी|
वक्त के साथ तुमने उन्हें और आने दिया, ठहरने दिया,आँखों के साथ, मुस्कुराहट के पास,
इज़्ज़त दी, और उन्होंने निखार दिया।
रुला देते हैं ये रंग आखिर सभी को मगर, कहाँ तुम्हें, वो चंद लकीरें।